MDC/MIC हिंदी गेस पेपर
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नमस्कार साथियों तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का कुछ सिलेबस का ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन आप सभी को लिए लेकर आया हूं जिन्हें आप चेक कर सकते हो और अपने एग्जाम में अच्छे नंबर ला सकते हो यह कुछ क्वेश्चन पुराने लिए गए क्वेश्चन से भी हैं और कुछ बनाए गए हुए हैं जो सिलेबस में है ।
यह सेमेस्टर 2 का 2024 में होने वाला एग्जाम के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण क्वेश्चन रहने वाला है आप सभी के लिए इसलिए इस क्वेश्चन को ध्यानपूर्वक आप एक बार पढ़ ले क्योंकि एक बार पढ़ने से आपकी क्वेश्चन दिमाग में छप जाए तो आप एग्जाम में आंसर लिख सकते हैं ।
बात करें तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के बारे में तो बिहार का दूसरा सबसे बड़ा यूनिवर्सिटी माना जाता है और खास करके Tnb टीएनबी कॉलेज भागलपुर सबसे ज्यादा पॉपुलर है यूथ के बीच ।
और कुछ सिलेबस के बारे में बात कर ले यूनिट
Tilka manjhi bhagalpur university mdc hindi guess paper
Hindi: MIC / MDC
Unit-1.
2: हिन्दी कविता : मध्यकाल
1. विद्यापति (विद्यापति पदावली, संपादक रामवृक्षबेनीपुरी)
2. देख देख राधा रूप अपार …… ….(2)
3. जय जयभैरवि असुर …
4. तातल सैकत बार बिन्दु सम…. (254) कबीर (कबीर ग्रंथावली संपादक बाबू श्याम सुंदर दास)
1. अकथ कहानी प्रेम की ….. …(156)
2. लोका मति के भोरा रे. (402)
मलिक मुहम्मद जायसी (पद्मावत, संपादक: वासुदेवशरण अग्रवाल)
1. मानसरोदक खण्ड
Unit-2.
सूरदास (श्रीकृष्ण बाल-माधुरी; गीता प्रेस, गोरखपुर)
1. कहनलागे मोहन मैया – मैया ..(88)
2. मैया ! हौं गाई चरावन जैहों (281)
तुलसीदासरामचरित मानस (बाल काड) गीता प्रेस गोरखपुर
Unit-3.
1. धनुर्भग प्रसंग (दोहा संख्या: 249 से 262 तक)
बिहारी : ( बिहारी रत्नाकारः संपादक श्री जगन्नाथदासरत्नाकार) दोहा संख्या-1, 8, 16, 20, 32, 33, 38, 51, 63, 67
घनानंद : (घनानंदकवित, भूमिका: आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र) (7)
1. भये अति निठुर, मिटायपहचानिडारी
2. तब तौ छवि पीवतजीवत है (13)
3. रावरे रूप की रीति अनूप …
4. अति सूधोसनेह को मारग है।
डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं धन्यवाद साथियों।
1. विद्यापति की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- विद्यापति की कृतियों में भक्ति भावना विविध रूप में दिखाई पड़ती है। कुछ विद्वानों व समीक्षकों की धारणा है कि विद्यापति किसी विशेष देवी-देवता के पक्षधर नहीं थे। उन्हें विभिन्न देवी- देवताओं के प्रति श्रद्धा थी। कहीं उन्होंने शंकर व विष्णु की समान रूप से उपासना की है, तो कहीं पुण्य सगुण व निर्गुण ईश्वर की एक ही रूप में अर्चना की है। राधा व कृष्ण की वन्दनाएँ उन्होंने अनेक बार की है। वे शक्ति की देवी अर्थात् दुर्गा के भी उपासक थे। मिथिला में प्राचीनकाल से ही शक्ति देवी माँ की भक्ति होती रही है। विद्यापति उनकी उपासना करते हुए कहते हैं- विदिता देवी, विदिता हो। अधिकांश विद्वानों का कथन है कि वे शिवोपासक थे। शिव की भक्ति के कारण ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई थी। उनके गाँव में बाणमहेश्वर (शिव) का मन्दिर आज भी है। अनेक ग्रन्थों में उन्होंने शिव को ईश्वर रूप में स्मरण किया है। कभी-कभी गंगा देवी व गणेश देव को भी नमस्कार करते हैं। अतः उनकी भक्ति विविध मुखी थी।
2. विद्यापति का परिचय दें।
उत्तर- हिन्दी साहित्य जगत् में विद्यापति मैथिल कोकिल के नाम से विख्यात हैं। इनका जन्म 1368 ई. में हुआ। इनका निवास-स्थान दरभंगा जिले के विसपी नामक गाँव में था। विद्यापति को कृष्णभक्ति काव्य की रचना करने वाला हिन्दी को प्रारम्भिक कवि भी कहा जाता है। इनके प्रथम आभपदाता राजा कीर्तिसिंह माने गए हैं। बाद में ये मिथिली के महाराजा शिवसिंह के आश्रय में रहे। रानी लखिमा देवी इनकी विशेष प्रशंसक एवं भक्त थी। विद्यापति ने अपनी रचना कीर्तिलता एवं कीर्तिपताका में अपने आश्रयदाता शिवसिंह और कीर्तिसिह की वीरता का बड़ा ही ओजस्वी एवं प्रभावशाली वर्णन किया है।
रचनाएँ रची गई। हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत विद्यापति की तीन रचनाओं का उल्लेख किया जाता है- ‘कीर्तिलता’, ‘कीर्तिपताका’ व ‘पदावली ‘कीर्तिलता’ एवं ‘कीर्तिपताका’ चरितकाव्य है एवं पदावली श्रृंगारिक एवं भक्तिपरक रचना मानी गई है। पदावली में इन्होंने राधा-कृष्ण की प्रणय-लीलाओं का अत्यन्त हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। भाव एवं शैली दोनों दृष्टियों से विद्यापति को जमदेव का ऋणी माना जाता है। विद्यापति की प्रसिद्धि का आधार उनकी पदावली ही है, लेकिन कीर्तिलता का भी अपना महत्व है।
विद्यापति ने अपनी अधिसंख्य कृतियों की रचना संस्कृत में की। संस्कृत में इनके द्वारा 113
3. उत्तर- विद्यापति ने भक्तिभावना से सम्बन्धित पद भी लिखे थे और राधा-कृष्ण सम्बनधी श्रृंगारिक पद भी। उन्होंने बहुत समय तक लेखक कार्य किग था। संस्कृत, अवहट्ट तथा मैथिली इन तीन भाषाओं में उनकी रचनाएँ प्राप्त हैं। यदि समस्त रचनाओं के आधार पर देखा जाये तो उनमें भक्ति भावना की पर्याप्त अभिव्यक्ति भी थी। मैथिली भाषा में जो उन्होंने पद लिखे हैं उनमें भी उनकी भक्ति भावना की अभिव्यक्ति है। फिर भी पदों में राधा और कृष्ण को लक्ष्य करके उन्होंने श्रृंगारिकता का खुलकर चित्रण किया है। उनके पर्याप्त पद श्रृंगारिक हैं। इसी कारण उन्हें एक ओर भक्त कवि कहते हैं, तो दूसरी ओर श्रृंगारिक कवि कहकर पुकारते हैं?
विद्यापति भक्त थे या श्रृंगारिक कवि ?
4. विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी ? उत्तर – विद्यापति को समय-समय पर अनेक उपाधियों से अलंकृत किया जाता रहा। विशेष रूप से राजा शिवसिंह उन्हें विशेष अवसरों पर अलग-अलग उपाधि प्रदान करते रहे। उनकी उपाधियों
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